छत्तीसगढ़–आंध्रप्रदेश सीमा पर 18 नवंबर की सुबह हुई बड़ी मुठभेड़ में मारे गए कुख्यात नक्सली माडवी हिड़मा और उसकी पत्नी राजे का अंतिम संस्कार रविवार को सुकमा जिले के पूवर्ती गांव में किया गया। दोनों के पार्थिव शरीर शनिवार देर शाम गांव पहुंचाए गए थे, जिसके बाद सुबह से ही आसपास के गांवों से भारी संख्या में लोग जुटने लगे।
भावुक माहौल में अंतिम विदाई
अंतिम संस्कार के दौरान गांव का माहौल बेहद संवेदनशील हो गया। हिड़मा की मां शव से लिपटकर रोती रही, जबकि मौके पर मौजूद सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोढ़ी भी खुद को संभाल नहीं पाईं और फूट-फूटकर रो पड़ीं। सुरक्षा कारणों से हिड़मा को काले कपड़ों में अंतिम यात्रा दी गई, जबकि उसकी पत्नी राजे को पारंपरिक लाल जोड़े में विदाई दी गई।
ग्रामीणों के आग्रह पर प्रशासन ने शवों को गांव में अंतिम संस्कार की अनुमति दी थी। चारों ओर से आए हजारों ग्रामीणों ने अंतिम यात्रा में हिस्सा लिया, जो सामान्य ग्रामीण अंतिम संस्कारों की तुलना में कई गुना बड़ा था।
मुठभेड़ में मारे गए थे सात नक्सली
18 नवंबर को सुरक्षा बलों ने एक संयुक्त अभियान के दौरान सीमा क्षेत्र में सात नक्सलियों को ढेर किया था। इनमें माडवी हिड़मा और उसकी पत्नी राजे भी शामिल थे। यह वही इलाका है जहां लंबे समय से नक्सलियों की सक्रियता रही है।
हिड़मा—नक्सल संगठन का सबसे खतरनाक चेहरा
35 वर्षीय माडवी हिड़मा को नक्सल संगठन का सबसे कुख्यात और खतरनाक कमांडर माना जाता था। लगभग दो दशकों तक वह दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी का प्रमुख चेहरा रहा और करीब 300 से अधिक हत्याओं में उसकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका बताई जाती है। दंतेवाड़ा बस हमला (2010), झीरम घाटी कांड (2013), कई आईईडी विस्फोट और ग्रामीणों की हत्या सहित अनेक संगीन घटनाएँ उसके नाम दर्ज थीं। उसके ऊपर करोड़ों का इनाम घोषित था।
राजे भी संगठन में सक्रिय सदस्य थी और कई मामलों में सह-आरोपी के रूप में चिन्हित थी।
गांव में मातम और भारी सुरक्षा व्यवस्था
अंतिम संस्कार के दौरान पूरे गांव में मातम पसरा रहा, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने किसी भी संभावित जोखिम को ध्यान में रखते हुए कड़ी निगरानी रखी। ग्रामीणों का कहना था कि भले ही हिड़मा नक्सली गतिविधियों में शामिल रहा हो, पर उनके लिए वह “गांव का बेटा” था, इसलिए अंतिम विदाई में लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए।