नई दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सैन्य योगदान देने वाले देशों के सम्मेलन (UNTCC) में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में सुधार की जोरदार मांग की।
उन्होंने कहा कि आज का संयुक्त राष्ट्र अब भी 1945 की वास्तविकताओं को दर्शाता है, जबकि दुनिया 2025 में पहुंच चुकी है। जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि यूएन की विश्वसनीयता तभी बनी रह सकती है जब वह विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूत करे और उभरते वैश्विक दक्षिण (Global South) की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे।
🕊️ सुधार की दिशा में जरूरी बदलाव
जयशंकर ने कहा, “संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की संख्या अब चार गुना बढ़ चुकी है, पर इसकी कार्यप्रणाली और प्रतिनिधित्व में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। जो संस्थाएं बदलाव नहीं करतीं, वे अप्रासंगिक हो जाती हैं। यूएन को अधिक समावेशी, लोकतांत्रिक और सहभागी बनना होगा।”
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में विस्तार की आवश्यकता पर भी बल दिया, ताकि यह संस्था आज की वैश्विक वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व कर सके।
⚔️ शांति अभियानों पर सुझाव
डॉ. जयशंकर ने शांति अभियानों में भारत की भूमिका पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि “हमारे शांति सैनिक बहुपक्षवाद के सच्चे पथप्रदर्शक हैं, जो मानवता की सेवा में अपने प्राणों की आहुति देते हैं।” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि जिन देशों में शांति सेनाएँ भेजी जाती हैं और जिन देशों के सैनिक इन अभियानों में शामिल होते हैं, उन्हें निर्णय प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
🌏 भारत की वैश्विक दृष्टि
विदेश मंत्री के इस वक्तव्य ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि भारत वैश्विक न्याय, समानता और सहभागिता की दिशा में अग्रसर है। संयुक्त राष्ट्र के सुधार की यह मांग न केवल भारत की आवाज़ है, बल्कि उन सभी विकासशील देशों की भी है जो एक न्यायसंगत और संतुलित विश्व व्यवस्था की कामना रखते हैं।🔗 Slug: