बिहार चुनाव नतीजों ने इस बार स्पष्ट संकेत दिया है कि राज्य में मुस्लिम मतदाताओं के बीच राजनीतिक नेतृत्व का रुझान बदल रहा है। लंबे समय से पारंपरिक राजनीतिक गठबंधनों पर भरोसा जताने वाली मुस्लिम बिरादरी ने इस बार अलग दिशा में कदम बढ़ाते हुए एआईएमआईएम को मजबूत समर्थन दिया है। इससे यह माना जा रहा है कि समुदाय एक नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में आगे बढ़ा है।
बीते चुनाव में जहाँ 19 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुँचे थे, वहीं इस बार यह संख्या घटकर 11 रह गई। इनमें से 5 विधायक एआईएमआईएम के टिकट पर चुने गए, जबकि अन्य दलों—राजद, कांग्रेस और जेडीयू—के उम्मीदवारों को सीमित सफलता मिली। यह स्पष्ट करता है कि मुस्लिम वोट में भारी बंटवारा हुआ और कई सीटों पर मुकाबला बेहद प्रतिस्पर्धी बन गया।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की रणनीति इस चुनाव में अधिक प्रभावी दिखाई दी। सीमांचल क्षेत्र में पार्टी ने न केवल अपनी पिछली सीटें बरकरार रखीं, बल्कि कई सीटों पर दूसरे और तीसरे स्थान पर पहुँचकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया।
बायसी, अमौर, जोकीहाट, बहादुरगंज और कोचाधामन में पार्टी की पकड़ मजबूत रही। बहादुरगंज से तौसीफ आलम और कोचाधामन से सरवर आलम ने बड़ी बढ़त के साथ जीत दर्ज की, जिसने पार्टी की उपस्थिति को और सुदृढ़ किया।
इस बार के नतीजे इसलिए भी खास माने जा रहे हैं क्योंकि एआईएमआईएम के अनेक उम्मीदवारों को 10 हजार से लेकर एक लाख से अधिक वोटों तक का समर्थन मिला। कुल वोट शेयर के रूप में पार्टी को 1.85% यानी लगभग 9.3 लाख वोट हासिल हुए, जो पिछले चुनाव की तुलना में उल्लेखनीय बढ़ोतरी है।
क्या है इस बदलाव का संकेत?
विश्लेषकों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय ने इस बार अपने पारंपरिक गठबंधनों से हटकर नए राजनीतिक विकल्पों को आज़माने का प्रयास किया।
महागठबंधन द्वारा मुस्लिम समुदाय से डिप्टी सीएम पद का चेहरा न घोषित करना भी मतदाताओं में असंतोष का कारण माना गया। परिणामस्वरूप, कई सीटों पर वोटों का बिखराव देखने को मिला, जिसका सीधा असर विरोधी दलों के प्रदर्शन पर पड़ा।
सीमांचल में एआईएमआईएम की मजबूत उपस्थिति
सीमांचल—जहाँ मुस्लिम आबादी उल्लेखनीय है—में पार्टी की जीत और प्रभाव पहले की तुलना में अधिक दिखा।
यहाँ नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं में पार्टी के प्रति भरोसा बढ़ा है और आने वाले चुनावों में यह बदलाव और भी प्रभावी रूप ले सकता है।