बाराबंकी की पूजा पाल ने जापान में रचा इतिहास, बनाया धूल रहित थ्रेशर

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले की रहने वाली पूजा पाल ने विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में ऐसा इतिहास रचा है, जो पूरे देश को गर्वित करता है। सिरौलीगौसपुर ब्लॉक के डलइपुरवा गांव की 17 वर्षीय पूजा पाल ने धूल रहित थ्रेशर बनाकर न सिर्फ किसानों की सेहत की चिंता को हल किया, बल्कि जापान में भारत का परचम भी लहराया

पूजा पाल थ्रेशर अविष्कार की प्रेरणा उन्हें स्कूल के दिनों में मिली, जब वे पूर्व माध्यमिक विद्यालय अगेहरा में कक्षा 8 में पढ़ती थीं। खेतों में गेहूं की मड़ाई के दौरान उड़ने वाली धूल से बच्चों और ग्रामीणों को सांस की तकलीफ होती थी। इस समस्या को देखकर पूजा ने एक ऐसा थ्रेशर बनाने की ठानी जो पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाए।

अपने विज्ञान शिक्षक राजीव श्रीवास्तव के सहयोग से पूजा ने सिर्फ 3,000 रुपये की लागत में एक धूल रहित थ्रेशर का मॉडल तैयार किया। इस मॉडल में पंखा, जाली और पानी का टैंक लगाया गया, जिससे निकलने वाली धूल एक जगह इकट्ठा हो जाती है और हवा स्वच्छ रहती है।

पूजा पाल थ्रेशर अविष्कार को पहले 2020 में जिला स्तर पर पहचान मिली, फिर यह मॉडल मंडल, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा। दिसंबर 2020 में लखनऊ की राज्य स्तरीय प्रदर्शनी और दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान मेले में इस नवाचार को व्यापक सराहना मिली।

2023 में, भारत सरकार की इंस्पायर अवार्ड MANAK योजना के अंतर्गत पूजा का चयन हुआ, और वे उत्तर प्रदेश से चुनी गई एकमात्र प्रतिभागी बनीं। इस उपलब्धि ने उन्हें साकुरा हाई स्कूल प्रोग्राम के तहत जापान यात्रा का अवसर दिलाया, जहां उन्होंने टोक्यो के विश्वविद्यालयों और विज्ञान प्रयोगशालाओं का भ्रमण किया।

पूजा का यह आविष्कार अब भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पेटेंट कराया जा रहा है, जिससे उनकी खोज की मौलिकता और उपयोगिता को मान्यता मिली है।

पूजा के पिता पुत्तीलाल दिहाड़ी मजदूर हैं और मां सुनीला देवी स्कूल में रसोइया का काम करती हैं। पांच भाई-बहनों के साथ एक कच्चे घर में रहने वाली पूजा ने सीमित संसाधनों में भी कभी हार नहीं मानी। बिजली और शौचालय जैसी सुविधाओं की कमी के बावजूद पूजा ने दीये की रोशनी में पढ़ाई की और घर के कामों में भी परिवार का सहारा बनीं।

पूजा पाल थ्रेशर अविष्कार न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सराहनीय है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों को यह सीख देता है कि मेहनत, दृढ़ निश्चय और सही मार्गदर्शन से कोई भी सपना साकार किया जा सकता है।

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