चांडिल (झारखंड)। झारखंड की सांस्कृतिक आत्मा को जीवंत करने वाला करम पर्व इस वर्ष भी भाद्रपद मास की एकादशी को, यानी 6 सितंबर 2025 को पूरे उल्लास से मनाया जाएगा। यह पर्व युवाओं, स्वास्थ्य, समृद्धि और शक्ति की देवी करम देवी की आराधना को समर्पित है।
करम नृत्य की छटा
इस अवसर पर आदिवासी युवक-युवतियां करम पेड़ की डाल एक-दूसरे को सौंपते हुए गोल घेरा बनाकर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान सभी के हाथ एक-दूसरे की कमर पर होते हैं और ढोल की थाप पर थिरकते हैं।
जावा पर्व की खुशी
यही समय होता है जब अविवाहित आदिवासी कन्याएं ‘जावा पर्व’ भी मनाती हैं। इस पर्व में वे अपनी पसंद के साथियों का हाथ थामकर परंपरा और प्रेम के संगम को दर्शाती हैं। यह आयोजन समूहिकता और पारंपरिक मूल्यों को प्रकट करता है।
पारंपरिक संगीत और वाद्ययंत्र
करम पूजा के दौरान मांडर, ढोल, नगाड़ा और बांसुरी जैसे वाद्ययंत्रों की गूंज पूरे चांडिल क्षेत्र में सुनाई देती है। गीतों में प्रकृति, प्रेम और लोक संस्कृति की झलक मिलती है।
क्यों महत्वपूर्ण है करम पूजा
यह पर्व न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि आदिवासी समाज की एकता, सामाजिक भाव और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक भी है। यह पर्व नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ता है और सामूहिक सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है।
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