बिहार चुनाव 2025 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और मायावती की रणनीति ने नया मोड़ ला दिया है। जहां शुरुआती चरण में चुनावी जंग त्रिकोणीय लग रही थी, अब एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर बन चुकी है। इसके बीच मायावती की पार्टी बसपा खामोशी से अपना जनाधार मजबूत करने में जुटी है।
बसपा की ओर से आकाश आनंद की सक्रियता और दलित युवाओं की बढ़ती भागीदारी पार्टी के लिए नई उम्मीदें जगा रही हैं। 19% से अधिक दलित आबादी वाले बिहार में मायावती की कोशिश है कि दलित वोट बैंक को एकजुट कर राजनीतिक गणित बदल दिया जाए।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता एनडीए के लिए दलित कार्ड हैं, जबकि महागठबंधन को तेजस्वी यादव के ‘एमवाई समीकरण’ का लाभ मिलता है। लेकिन बसपा अगर कट्टर अंबेडकराइट वर्ग को अपने पक्ष में लाने में सफल हुई, तो कई सीटों पर समीकरण पूरी तरह बदल सकते हैं।
2020 में बसपा ने चैनपुर सीट जीतकर बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। इस बार मायावती चुनावी नतीजों से ज्यादा अपने समर्थक वोट बैंक को मजबूत करने पर जोर दे रही हैं। राजनीतिक रूप से यह उनके लिए उत्तर प्रदेश तक संदेश देने की बड़ी रणनीति है, क्योंकि यूपी के 2027 विधानसभा चुनाव की तैयारियों में बिहार से मिला अनुभव निर्णायक साबित हो सकता है।
भले ही भाजपा और कांग्रेस दोनों बसपा के प्रभाव को नकार रहे हों, लेकिन सच्चाई यह है कि मायावती की हर सक्रियता बिहार के दलित समीकरणों को प्रभावित कर रही है। अब देखना यह होगा कि क्या बसपा दलितों की नई आवाज बनकर बिहार की राजनीति में “X-फैक्टर” साबित होती है।